Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-2)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


राज ने गाड़ी बेक की और घर की ओर चल दिया।वह बस यही सोचता जा रहा था कि उस सुनसान पड़ी हवेली में कभी भी कोई नहीं रहता था वह अक्सर वहां खेलने जाता था अपने दोस्तों के साथ ।उसने सुना था वहां बहुत सालों पहले कोई हादसा हुआ था जिस कारण वो हवेली वीरान पड़ी थी पर आज उस लड़की को उस हवेली में जाते देखा तो बड़ा अजीब लगा।

राज जैसे उस लड़की के रुप जाल में उलझ कर रह गया था।जब वह बरसात में भीग रही थी तब बारिश की बूंदें उसके बालों से ऐसे झर रही थी जैसे मोती, होंठ गुलाब की पंखुड़ियों के समान कोमल और लाल थे ,दूध में केसर मिला देने जैसा रंग था उसका।बस राज तो जैसे उसके मोहपाश में बांध गया था।एक बार को उसने ये विचार भी दिमाग से झटक दिया कि वो बंद दरवाजे को खोले बिना अंदर कैसे गयी उसने मन ही मन सोचा शायद ये उसका वहम हो वह दरवाजा खोलकर ही अंदर गयी हो।

इतने में राज की गाड़ी अपने घरके गेट के आगे खड़ी थी। दरअसल माता पिता के देहांत के बाद उसके अंकल  भूषण प्रसाद और उनकी बिटिया नयना दोनों ही उनके ही घर में आकर रहने लगे थे। क्यों कि राज और नयना दोनों ही हम उम्र थे इसलिए भूषण प्रसाद जी को दोनों को अलग-अलग पालने में दिक्कत आ रही थी। इसलिए वो राज के घर में ही आकर रहने लगे थे और उसकी सारी प्रोपर्टी की देखभाल करते थे।

जैसे ही वो कोठी के यार्ड में पहुंचा तो देखा दरवाजे पर नयना खड़ी उसका इंतजार कर रही थी।उसे देखते ही दौड़कर उसके पास आयी तभी राज बोला,"अरे मोटी ! यहां क्यों आ गई भीग जाओगी । चलों अंदर।"

यह कहकर राज खिलखिला पड़ा।

तभी नयना चिहुकी,"ऊहममम मैं क्या अब मोटी रह गयी हूं बचपन में थी ।देखो ना पापा ये राज मुझे मोटी कह रहा है।" यह कहकर वह अंदर की ओर दौड़ी।

भूषण प्रसाद हंसते हुए बाहर आये और बोले,"तुम दोनों की ये नोंक झोंक बचपन से ही चली आ रही है अब तो बड़े बन जाओ।"

राज ने फटाफट गाड़ी से उतर कर भूषण प्रसाद के पांव छूए तो उन्होंने उसे गले से लगा लिया 

"ओह कितने दिनों बाद देख रहा हूं तुम्हें । डाक्टरी की पढ़ाई के साथ साथ तुम में भी बहुत बदलाव आ गया है राज बेटा।"

"जी अंकल वहां का रहन-सहन ,खान पान सब अलग था यहां से कसम से घरके खाने की बहुत याद आ रही थी वहां पर ।आज मेरी पसंद का खाना ही बनाया है ना।"

यह कहकर राज अंदर की ओर लपका।

"हां बेटा सब तुम्हारी ही पसंद का बना है।जी भर कर खाओ फिर बातें करेंगे।" भूषण प्रसाद ये कहकर स्टडी रूम में चले गये।

राज की पसंद नयना जानती थी। क्या दम आलू ,मटर पनीर,सफेद रसगुल्ले सब ही तो थे डाइनिंग टेबल पर।राज ने जी भर कर खाया जैसे जन्मों की भूख शांत कर रहा हो। अच्छी तरह खा पी कर राज नयना से मुखातिब हुआ,"और मोटी आजकल क्या चल रहा है?"

नयना ने चिढ़ते हुए कहा,"क्या मोटी मोटी लगा रखा है । अच्छे से देखा ही नहीं तुम ने मुझे जो मेरे स्लिम होने का पता चलता।"

राज हंसते हुए बोला,"अच्छा बाबा ,मेरी प्यारी नयना आजकल क्या चल रहा है ।"

"बस कुछ नहीं कालेज का लास्ट ईयर चल रहा है और कभी कभी पापा के साथ उनके काम में भी हाथ बंटा देती हूं।"

"वो ही ना पुरातत्व विभाग वाला आजकल क्या चल रहा है?* राज ने उत्सुकता वश पूछा।


नयना ने चहकते हुए कहा,"पता है आजकल पापा उस पुराने किले के खंडहरों की खुदाई में लगे हैं ।कल ही कोई बड़ी बात पता चली है तभी तुम्हें शहर से बुलाया है।"

"अच्छा ये बात है तब तो मैं अभी अंकल से मिलकर आता हूं।" राज उतावला हो गया क्योंकि भूत प्रेत , रहस्यमय बातें ये सब तो उसका पसंदीदा विषय था।तभी नयना ने उसे रोका,"नहीं अभी वहां मत जाओ पापा किसी से बात कर रहे हैं । थोड़ी देर मेरे पास बैठो तुम तो विदेश जाकर बिल्कुल बदल गये हो और हां आज इतने तूफान में कैसे आ पाये तुम?"

जैसे ही आज के सफर का नयना ने जिक्र किया तो राज को वहीं लड़की की याद आ गयी और उसके मुंह से आह निकल गई।

"पता है आज मेरे साथ क्या हुआ ?* राज नयना से बोला।

*क्या?"नयना भी उत्सुक हो गई।

"आज जब मैं घर की ओर आ रहा था तब अचानक से एक लड़की मेरी गाड़ी के रास्ते में आकर खड़ी हो गई । बहुत ही सुन्दर लड़की थी सफेद साड़ी में किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।कसम से मैं तो उसे देखता ही रह गया और वो उस सुनसान जंगल में अकेली थी मुझे उसे वहां अकेले छोड़ना सही नहीं लगा तो मैंने उसे गाड़ी में लिफ्ट दे दी ।पता है दो तीन बातें बड़ी अजीब हुई मेरे साथ ।वो लड़की पलकें नहीं झपका रही थी और इतनी बारिश होने के बाद भी उसके कपड़े गीले नहीं थे और हां पता है वो कहां पर उतरी थी ?"

"कहां?" नयना ने आश्चर्य से कहा।

"वो उसी पुरानी लाल हवेली पर जो सौ दो  सौ सालों से बंद पड़ी है। क्या तुम्हें पता है वहां कोई आकर बस गया है क्या?" राज ने नयना से पूछा।

"ना बाबा ना । मुझे तो उस हवेली के नाम से ही डर लगता है ।याद है तुम्हें एक बार तुम मुझे उस हवेली के बाहर वाले बगीचे में ले गये थे जो अब जंगल में बदल चुका है । वहां पर शाम होते ही कैसे छन-छन घुंघरू की आवाज आ रही थी तभी किसी की चीख सुनाई दी ।सच में मैं तो सब कुछ छोड़कर वहां से भाग ली थी और घर आकर ही दम लिया फिर तीन दिनों तक बुखार में तपती रही थी ।पिता जी ने कितना डांटा था हम दोनों को ।तब से मैं तो उस हवेली की ओर मुंह करके भी नहीं सोती।" नयना ने थर-थर कांपे हुए कहा।

राज बोला,"तुम तो बच्ची की बच्ची रहो गी।बचपन में तो पेड़ों के बीच से भी हवा निकले तो ऐसे लगता है जैसे घुंघरू बज रहे हैं और चीखा तो कोई और ही होगा।*

"बस बस भूतनी से मिलकर आ रहे हो और कह रहे हो ऐसा कुछ नहीं हैं।"नयना ने मुंह बनाते हुए कहा जिसमें उसकी चिढ़ भी शामिल थी।

"कोई बात नहीं ,भूतनी ही सही ।कम से कम तुम्हारी तरह वो मेरा दिमाग तो नहीं चाट रही थी।" राज ने हंसते हुए उसकी चोटी खींची और स्टडी रूम की ओर बढ़ गया।


कहानी अभी जारी है……….




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3 Comments

Mohammed urooj khan

26-Aug-2023 11:13 AM

शानदार 👌👌👌

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KALPANA SINHA

12-Aug-2023 07:11 AM

Nice

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Mahendra Bhatt

04-Jul-2023 11:29 AM

👏👍🏼

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